बस एक पल
सारे पथ के कंकण बीन कर आया हूँ,
अब कोमल पैरों की आहट आने दो,
बगिया का हर फूल खिला कर आया हूँ ,
हवा के झोंके खूशबू को फैलाने दो ,
सब तारों तो टांक दिया मैंने नभ में,
चाँद सा चेहरा उजियारे को आने दो,
देखो कैसा पत्थर का नीरव जंगल,
हंसी का झरना फूट कर अब तो आने दो,
मेरे मन के गहरे खारे सागर में,
मीठे पानी की नदिया बह जाने दो,
फिर जब जब शाम ढले और रास्ते मुड़ जाएँ,
यादों की लोरी से मन बहलाने दो। .
- पाखी -
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1 comment:
Very good poem as feeling the sound of nature n feeling the true emotions of natural mind when it touch the nature.
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