पाती नन्ही गुड़िया की
( विवाहोपरान्त पुत्री का अपने पिता के जन्मदिवस
पर लिखा एक भावपूर्ण पत्र)
लोग बहुत से आये होंगें
भेंट बधाई लाये होंगें
ख़ुशियों से घर होगा रोशन
चहका चहका होगा हर मन
चाँद सितारों जड़ी शाम में
बिटिया की यह पाती पाकर
चुपके से तुम आंख बचाकर
अपने जन्म दिवस के कुछ क्षण
उस सारी महफ़िल से चुराकर
मेरी यादें बसी हो जिसमें
घर के उस कोने आ जाना
मां को भी तुम साथ ले आना
मेरी चिट्ठी में पढ़ना फिर
यादें जो में कभी न भूली...
बापू तुम मुझको बहलाकर
दूर घूमाने ले जाते थे
ठुनक ठुनकती मैं जाती थी
पाँव जो मेरे थक जाते थे
मैं थी सबके आंख का तारा
मैं थी घर भर का उजियारा
मैं जब करती थी कुनमुन
लोरी मां की मीठी धुन
मेरा घर था मेरी दुनिया
सब लोगों की प्यारी मुनिया
वो घर कितना प्यारा था
बचपन कितना सारा था..
मैं थी घर की राजकुमारी
सुंदर रंगों की फुलवारी
वो घर मेरा अपना था
या एक सुंदर सपना था
मेरी आँखों के सपनों में
बापू तुम रंग भरते थे
मेरे बचपन की इठलाती
हर जिद पूरी करते थे..
वो आंगन छज्जा वो गलियां
याद अभी भी आते हैं
वो भीगे सावन के झूले
आँखे नम कर जाते हैं
बेल सरीखी बढ़ती जाती
मुझको यह एहसास न था
इस मिट्टी से जुड़ने का हक
सचमुच मेरे पास न था..
एक दिन ऐसा भी आया
तुमने मुझको समझाया
जा बेटी;अपने घर जा
ये अंगना अब हुआ पराया..
आंसू के दो मोती छलके
मैंनें मुड़ मुड़ देखा था
मेरे मन का एक हिस्सा
चटक कहीं जा छूटा था
फूट फूट कर रोई थी मैं
पलट पलट अकुलाई थी
तुम सब दूर खड़े थे लेकिन
दया जरा न आई थी.
ऐसी ही दुनिया की रीति
सब समझाते जाते थे
मेरे टूटे मन को जैसे
यूँ बहलाते जाते थे..
मेरी दुनिया बदल चुकी थी
प्यारी मुनिया समझ चुकी थी
अब वो दिन न आयेंगें
बापू पास बुलाएंगे
गोदी में समझायेंगे
मां चोटी को गूंदेगी
बस्ता टिफीन लगाएगी
प्यार से मुझे सजायेगी
भैया मुझे चिढ़ाएगा
प्यार से फिर हंस जाएगा
गुड़िया मेरी ब्याहेगा..
कैसे छोटी छोटी बातें
कितनी सारी यादें हैं
याद कभी करने जो बैठो
भाव नहीं थम पाते हैं
बापू तुमको बहुत मुबारक
जन्मदिवस का यह शुभदिन
इस बिटिया की पाती पाकर
कैसा लगता उसके बिन..
(c) पाखी