मेरे दोने खाली हैं अब.……
बहुत समय पहले की बात है जब दावतों में खाना पत्तल दोने में परोसा जाता था। अतिथिगण एक पंगत में बैठ जाते थे और खाना परोसने वाले बाल्टियों और परातों में विभिन्न प्रकार के व्यंजन लेकर हर अतिथि को आग्रह कर कर परोसते थे। ऐसी ही किसी एक त्यौहार के अवसर पर आयोजित एक दावत में छोटे छोटे बच्चे एक पंगत में बैठे थे।
हर बच्चे के सामने दोने , पत्तल , सकोरे और कुल्लड़ रखे थे और उनकी माएं उन्हें प्यार से खाना परोस रही थीं. उनमे से एक बच्चा ऐसा था जिसकी माँ नहीं थी। बाकी बच्चों की माएं उस के पास रूककर पूछती , क्या लोगे बेटा …यह बच्चा गुमसुम खोया खोया सा जब तक कुछ बोल पाता तब तक खाना परोसने वाली महिला आगे बढ़ जाती। फिर दूसरी महिला आती और यही दृश्य प्रस्तुत होता।
मैं दूर से उस बच्चे की विवशता और संकोच देख रहा था। मैंने देखा जहाँ एक तरफ बाकी बच्चों के पत्तलों में उनकी पसंद के खाने के ढेर लगे हुए थे और उनकी माएं उन्हें आग्रह कर कर खिला रही थी , इस बच्चे के जिसकी माँ नहीं थी सारे दोने खाली थे।
बहुत देर तक वह बच्चा कभी दायें , कभी बाएं देखता रहा , उसकी आँखे जैसे अपनी माँ को ढूंढ रही थी। फिर बिना कुछ खाये वह बच्चा पंगत छोड़ कर उठ कर जाकर मुंडेर पर कोहनी टिका कर दूर आकाश में देखने लगा।
मैंने उसके पास जाकर उसके सर पर प्यार से हाथ फिराया। . उस बच्चे ने मेरी तरफ मुड़ कर देखा। उसकी आँखों में आंसू भरे हुए थे और उसने डबडबाते होठों से जो बोला वह मैं आज तक नहीं भुला पाया। ।
वह बोला " मेरे दोने खाली हैं अब , मेरे दोने कौन भरेगा ? "…
हर बच्चे के सामने दोने , पत्तल , सकोरे और कुल्लड़ रखे थे और उनकी माएं उन्हें प्यार से खाना परोस रही थीं. उनमे से एक बच्चा ऐसा था जिसकी माँ नहीं थी। बाकी बच्चों की माएं उस के पास रूककर पूछती , क्या लोगे बेटा …यह बच्चा गुमसुम खोया खोया सा जब तक कुछ बोल पाता तब तक खाना परोसने वाली महिला आगे बढ़ जाती। फिर दूसरी महिला आती और यही दृश्य प्रस्तुत होता।
मैं दूर से उस बच्चे की विवशता और संकोच देख रहा था। मैंने देखा जहाँ एक तरफ बाकी बच्चों के पत्तलों में उनकी पसंद के खाने के ढेर लगे हुए थे और उनकी माएं उन्हें आग्रह कर कर खिला रही थी , इस बच्चे के जिसकी माँ नहीं थी सारे दोने खाली थे।
बहुत देर तक वह बच्चा कभी दायें , कभी बाएं देखता रहा , उसकी आँखे जैसे अपनी माँ को ढूंढ रही थी। फिर बिना कुछ खाये वह बच्चा पंगत छोड़ कर उठ कर जाकर मुंडेर पर कोहनी टिका कर दूर आकाश में देखने लगा।
मैंने उसके पास जाकर उसके सर पर प्यार से हाथ फिराया। . उस बच्चे ने मेरी तरफ मुड़ कर देखा। उसकी आँखों में आंसू भरे हुए थे और उसने डबडबाते होठों से जो बोला वह मैं आज तक नहीं भुला पाया। ।
वह बोला " मेरे दोने खाली हैं अब , मेरे दोने कौन भरेगा ? "…
भोर का तारा पूछ रहा है
धूप में जब गर्मी आयेगी
ममता का आँचल फैलाकर
सुंदर छाया कौन करेगा
मेरे दोने खाली हैं अब
मेरे दोने कौन भरेगा ………
पालू पाखी की आँखों में
जाने कितने बादल बरसे
कच्चा मन जब टूट टूट कर
मिटटी से जुड़ने को तरसे
बचपन कि इस एक क्यारी की
कहो गूढ़ाई कौन करेगा
मेरे दोने खाली हैं अब
मेरे दोने कौन भरेगा ………
बुलबुल गाकर किसे बुलाये
मन के फूल सभी मुरझाये
पूरा दुःख पर चाँद है आधा
जीवन का सुर कितना साधा
जिस सरगम पर तार ये टूटा
उसको पूरा कौन करेगा
मेरे दोने खाली हैं अब
मेरे दोने कौन भरेगा ………
पाखी की टुकटुक आँखों में
आंसू उमड़ उमड़ रह जाते
क्या खोया और क्यूँ खोया है
इसके उत्तर मिल नहीं पाते
बचपन के कुम्हलाते मन की
चेहरे पर आती छाया को
बिना कहे ही कौन पढ़ेगा
मेरे दोने खाली हैं अब
मेरे दोने कौन भरेगा ………
- मनीष 'पाखी' -