Thursday, April 26, 2018

My poem : बेवजह



बेवजह











ये
क्या है जो मुझे खा रहा है..

एक धीमा जहर
या
एक तेज दवा..

एक गहरी आह
या
एक बेअसर दुआ..

सुलगता राख होता
बेवजह खाक होता
टुकड़ो में
तबाह होता…

मुझे मुझ में
पनाह दे...

मुझे खुद का बना दे...

© पाखी

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